TSVS के 2 स्टूडेंट्स का 15 इंटरनेशनल यूनिवर्सिटीज में सिलेक्शन:द संस्कार वैली स्कूल के शुभ-ईशना जाएंगे हावर्ड और स्टैनफोर्ड, भारत लौटकर करेंगे काम
मध्य प्रदेश में भोपाल शहर के द संस्कार वैली स्कूल से पढ़े दो बच्चे अब दुनिया की टॉप यूनिवर्सिटीज से आगे की पढ़ाई करेंगे। शुभ जैन और ईशना अग्रवाल को Ivy League यूनिवर्सिटी ने ग्रेजुएशन प्रोग्राम के लिए सिलेक्ट किया है। Ivy League अमेरिका की 8 टॉपमोस्ट यूनिवर्सिटीज का एक ग्रुप है, जो पूरी दुनिया में अपने बेस्ट एकेडमिक करिकुलम के लिए जाना जाता है। शुभ का सिलेक्शन स्टैनफोर्ड, प्रिंसटन, कोलंबिया और UC बर्कली यूनिवर्सिटीज के लिए हुआ है। वहीं ईशना को हावर्ड, इंपीरियल कॉलेज लंदन, यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन, विलियम्स कॉलेज, यूनिवर्सिटी ऑफ सदर्न कैलिफोर्निया, यूनिवर्सिटी ऑफ इलिनॉइस अर्बाना- कैंपेन, परड्यू यूनिवर्सिटी और यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबरा ने सिलेक्ट किया है। US में पढ़कर वापिस इंडिया लौटना है पढ़ाई पूरी करने के बाद ईशना और शुभ दोनों ही भारत वापस लौटना चाहते हैं और देश में ही रहकर लोगों के लिए काम करना चाहते हैं। शुभ कहते हैं, ‘मैं Ivy League यूनिवर्सिटी इसलिए जाना चाहता हूं, क्योंकि वहां जो सीख मिलेगी उसे वापस इंडिया ला सकूं। मैं वहां पॉलिटिकल साइंस और लॉ की पढ़ाई करने जा रहा हूं। पढ़ाई खत्म करने के बाद मैं इंडिया वापस आना चाहता हूं और इंडिया में ही अपनी सीख को इस्तेमाल करना चाहता हूं। इंडिया में हम देखते हैं कि 56 मिलियन (5 करोड़ से ज्यादा) ज्यूडिशियल बैकलॉग है। जेंडर बेस्ड वॉयलेंस पर लॉ आता है तो उसका उतना प्रभाव नहीं होता। मैं इस तरह की समस्याओं का सॉल्यूशन करना चाहता हूं।’ ईशना भी कुछ ऐसा ही सोचती हैं। वोहावर्ड इंजीनियरिंग करने जा रही हैं और चाहती हैं कि पढ़ाई पूरी करने के बाद भारत आएं और यहां कुछ ऐसा बनाएं जो सस्टेनेबल होने के साथ-साथ लोगों की मदद करे। ईशना ने कहा, ‘मैंने एकदम तो नहीं सोचा कि क्या करूंगी मगर ये तय जरूर किया है कि वापस अपने देश लौटूंगी। यहां आकर कुछ समय नौकरी करूंगी और उसके बाद अपनी इंजीनियरिंग स्किल्स और नौकरी के एक्सपीरियंस की मदद से कुछ इनोवेशन्स करना चाहती हूं। पर्यावरण का मुद्दा मेरे दिल के करीब है, इसलिए कुछ ऐसा बनाना चाहती हूं जिससे पर्यावरण को कुछ फायदा हो।’ फॉरेन यूनिवर्सिटीज के खर्च से डरें नहीं, स्कॉलरशिप्स टारगेट करें विदेशी यूनिवर्सिटीज में पढ़ाई की बात आते ही सबसे पहला ख्याल वहां होने वाले खर्चे का आता है। ज्यादा स्टूडेंट्स और पेरेंट्स को जब इन यूनिवर्सिटीज की फीस और दूसरे खर्चों के बारे में पता चलता है तो वो घबरा जाते हैं और इनमें सिलेक्शन के लिए ट्राय करना ही बंद कर देते हैं। इसे लेकर ईशना ने कहा, ‘हावर्ड और इसके जैसी दूसरी यूनिवर्सिटीज सभी स्टूडेंट्स को बराबर मौका देती हैं। ये स्टूडेंट्स के साथ किसी भी स्तर पर- चाहे जेंडर हो, फाइनेंशियल बैकग्राउंड हो, भेदभाव नहीं करतीं। इसी के साथ इस तरह की यूनिवर्सिटीज कम इनकम वाले पेरेंट्स के बच्चों को अपने यहां पढ़ने के लिए फाइनेंशियल एड देती हैं।’ खर्चे को लेकर शुभ कहते हैं कि कि विदेशी यूनिवर्सिटीज में बहुत सारी स्कॉलरशिप्स आपको मिल सकती हैं। वहां आसानी से जॉब्स, पॉर्ट टाइम जॉब्स भी मिल जाती हैं, जिससे पढ़ाई के साथ-साथ खर्चे भी संभाले जा सकते हैं। कई यूनिवर्सिटीज ऐसी भी हैं जो आपको वहां जाकर पढ़ाई करने के लिए पैसे देती हैं। द संस्कार वैली स्कूल से मिला सही फाउंडेशन द संस्कार वैली से पढ़े शुभ और ईशना कहते हैं कि एक बेहतर कॉलेज में एडमिशन पाने के लिए बेहतर स्कूल बहुत जरूरी है। संस्कार वैली स्कूल से उन्हें एक फाउंडेशन मिला, जिसकी वजह से वो मेहनत कर पाए। ईशना कहती हैं कि संस्कार वैली स्कूल ने उन्हें वो मौका दिया जिसकी वजह से वो अपनी रुचियों को समझ पाईं और एक्सप्लोर कर पाईं। इसके अलावा यहां के टीचर्स ने न सिर्फ पढ़ाई में बल्कि पर्सनल लाइफ में भी समय-समय पर उन्हें गाइड किया। शुभ भी अपने स्कूल को क्रेडिट देते हुए कहते हैं, ‘मेरी इस जर्नी में स्कूल का बड़ा अहम रोल है। संस्कार वैली स्कूल ने मुझे ऐसे मौके दिए जो मेरे काम आया। स्कूल के अलावा, मेरे दोस्त और मेरी फैमिली का सपोर्ट सिस्टम मिला। उनका ये मानना था कि चाहे मैं फेल हो जाऊं या पास हो जाऊं वो लोग हमेशा मेरे साथ हैं।’ Ivy League जाने के लिए स्कूल से ही तैयारी जरूरी शुभ और ईशना कहते हैं कि Ivy League यूनिवर्सिटी में जाने के लिए कोई एंट्रेंस एग्जाम या कोई सेट फॉर्मूला नहीं होता। आपको शुरुआत से ही यानी 9वीं से ही एक होलिस्टिक कैरेक्टर डेवलप करना होता है। इसके बाद ऐस्से राइटिंग, एकेडमिक्स, एक्स्ट्रा करिकुलर सब काम आता है। दरअसल, ये यूनिवर्सिटीज सिर्फ एक अच्छा स्टूडेंट्स नहीं ढूंढ रही होतीं। इन्हें ऐसे स्टूडेंट्स चाहिए जो पढ़ाई के बाद समाज में एक बेहतर कॉन्ट्रिब्यूटर बनें और कम्युनिटी के काम आएं। इसके लिए वो स्टूडेंट्स की पर्सनैलिटी को प्राथमिकता देते हैं। शुभ और ईशना के मुताबिक… बचपन में स्पीकिंग प्रॉब्लम से जूझा, अब UN में स्पीच दी 17 साल के शुभ जैन अपनी जर्नी को 'साइलेंस टु स्टैनफोर्ड' कहते हैं। वो कहते हैं, ‘बचपन से ही मुझे डिबेटिंग और स्पीकिंग पसंद है। लेकिन मैं एक बीमारी के साथ पैदा हुआ। दिन के एक हिस्से में मेरी आवाज पूरी तरह से चली जाती थी, लेकिन मैं नहीं चाहता था कि ये बीमारी मुझे डिफाइन करे। इसलिए मैंने डिबेटिंग चालू की और धीरे-धीरे मेरी आवाज सुधरने लगी। इसी को मैंने अपना पैशन बनाया।’ इसके बाद शुभ गांव गए जहां उन्होंने देखा कि महिलाएं किस तरह वॉयलेंस का शिकार बन रही हैं। इसलिए उन्होंने प्रोजेक्ट कैंप न्याय शुरू किया। इसके जरिए 400 महिलाओं को सेल्फ डिफेंस की ट्रेनिंग दी। इसी दौरान शुभ को लगा कि महिलाओं के पास जानकारी की कमी है। उसके लिए उन्होंने आपका न्याय चालू किया। इसके अलावा शुभ 'राइट टु ब्रीद' नाम से एक बुक भी पब्लिश कर चुके हैं। ऐसी ही और खबरें पढ़ें... ‘बढ़ते कॉम्पिटिशन से बिगड़ी स्टूडेंट्स की मेंटल हेल्थ’:सुसाइड प्रिवेंशन के लिए नेशनल टास्क फोर्स बनेगी, देश में किसानों से ज्यादा स्टूडेंट्स कर रहे सुसाइड सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को मेंटल हेल्थ से जुड़ी समस्याओं और आत्महत्या की घटनाओं को रोकने के लिए 'नेशनल टास्क फोर्स' (NTF) बनाने का आदेश दिया है। पूरी खबर पढ़ें...
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